नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिबनी

Netaji Subhas Chandra Bose
जन्म :
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन 1887 को ओडिशा के कटक शहर में एक हिन्दू परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम था ” जानकी नाथ बोस ” और माँ का नाम ” प्रभाबती ” था । जानकी नाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे । प्रभाबती और जानकी नाथ बोस के कुल 14 संताने थी जिन्मेसे 6 बेटियां और 8 बेटे थे । सुभाष उनके नौवी संतान और पाँचबे बेटे थे । अपने सभी भाईओं से सुभाष को सबसे अधिक लगाबशरद चंद्र से था । शरद चंद्र प्रभाबती और जानकी नाथ के दुसरे बेटे थे । शरद चंद्र के पत्नी का नाम विभावती था ।

Subhas Bose with his Family
शिक्षा:
नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढाई कटक के रेवेन्सा कोलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया । माध्यमिक शिक्षा समाप्त करनेके बाद वोह कोलकाता प्रेसिडेंसी कोलेज में दर्शनशास्त्र की पढाई कर रहे थे । रामकृष्ण परमहंस , स्वामी विबेकानंद और रविन्द्र नाथ ठाकुर जेसे महान लोगों की बनी से वो बोहोत प्रभाबित थे । बेनिटो मुसोलिनी , मुस्ताफा कमाल पाशा , गैरीबाल्डी और लेनिन के जेसे महान freedom fighters के चिन्ताधारा और ब्याक्तित्व तथा अमेरिका का स्वाधीनता संग्राम और फारसी रास्त्र बिप्लब भी उनके उपर गहरा प्रभाब पकाया था । जब वोह कोलेज में पढ़ रहे थे तब एक दुर्भाग्य जनक घटना घटी थी । भारत बिरोधी एक ब्रिटिश प्रोफेसर C.F. Wetenको सुबाश के उपस्तिथि में पिता गेया । उन्होने इस घटना स जुड़े आक्रमन्करिओन नाही नाम बताये और नाही खुदको निर्दोष कहा । इसी घटना के लिए वोह माफ़ी ना मांगने के कारण उन्हें 1916में उन्हें कोलेज से बाहर कर दिया गेया । उसके बाद वोह किसी तरतहा स्कोटिस चर्च कोलेज में एडमिशन लेली और वाहं स दर्शनशास्त्र प्रथम स्थान हासिल करके डिग्री हासिल की । 1919 में वोह I.C.S. ( Indian Civil Service ) की पढाई के लिए केमब्रिज चलेगेये । 1920 में सुभाष I.C.S. की परीक्षा में चोथे स्थान हसाल किआ ।
राजनितिक जीबन :
1921 में भारत में बढ़ते राजनितिक गति बिधिओं का समाचार पाकर वोह सिविल सर्विस छोड़ कर भारत बापसआगेये । भारत आनेके बाद वोह सर्ब प्रथम मुंबई गये और महात्मा गाँधी से मिले । 20 जुलाई 1921 को गांधीजी सुभाष के बिच पहली मुलाकात हुई । गाँधीजी ने उन्हें कोलकाता जा कर देशबंधु चित्तरंजन दस के साथ कम करने की सलाह दी । इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दस्बबू स मिले ।1922 में दासबाबु ने कांग्रेस के अंतर्गत ” स्वराज पार्टी ” की स्थापना की । बिधानसभा के अंदरसे अंग्रेज सरकार का बिरोध करने के लिए कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता औए दस्बबू कोलकाता के मेयर बन गये ।1923 में शुबश भारतीय जातीय कोंग्रेस में योगदान दिया और बंगला प्रादेशिक कोंग्रेस की पद सँभालने लगे । वोह महान नेता चित्तरंजन दस को अपना राजनिक गुरु मानते थे उनके प्रेरणा से अपनी राजनिक कार्य करते थे । 1924 में सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया । सुभाष ने आपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढांचा और कम करने का तरीका ही बदल डाला । कोलकाता के सभी रास्तों के अंग्रेजी नाम बदल कर उन्हें भारतीय नाम दिए गये । स्वतंत्रता संग्राम में प्राण न्योछाबर करने वालों के परिवारजनों को महापालिका में नोकरी मिलने लगी ।
वैवाहिक जीवन :
सन 1934 में जब सुभाष आस्ट्रिया में आपना इलाज करने के लिए ठहेरे हुए थे तब उनकी मुलाकात एमिली स्चेंक्ल ( Emilie Schenkl ) नाम के एक आस्ट्रियान महिला से हुई । एमिली के पिता एक परसिद्ध पशु चिकिस्चक थे । नाजी जर्मानी के सक्त कानून को देखते हुए उन दोनोने सन 1942 में बाड गस्थिन नमक स्थान पर हिन्दू पद्धति स बिबाह रचालिया । विएना में एमिली ने एक पुत्री को जन्म दिया । सुभाष ने उसे तब देखा जब वोह मुस्किलसे छार सप्ताह की थी । उन्होंने उसका नाम अनीता बोस ( Anita Bose ) रखा था ।
हरिपुर अधिवेशन :
नेताजी आपनी असीम सहस औए देस प्रेम के लिए वोह बोहोत ही लोकप्रिय हो गये थे । उनके विद्रोह और क्रन्तिकारी कामोको देखते हुए अंग्रेज सरकार ने उन्हें 1924 में गिरप्तार किआ एक साल बाद उन्हें बर्मा स्थित मान्दाले जेल को भेज दिया गेया ।1938 में वोह हरिपुर अधिबेसन में भारतीय जातीय कोंग्रेस के सभापति हुए । 1939 में गांधीजी के बिरोध करनेके बाद भी वोह त्रिपुरी अधिबेसनपे सभापति हुए । परन्तु इसी अधिबेसन के बाद गांधीजी के साथ मतभेद होनेके कारण सुभास चंद्र कोंग्रेस छोड़ कर 1939 में मई ‘ 3 तारीख को ” फोर्वोर्ड ब्लाक ” नाम स एक नेया राजनितिक दल बनाया ।
नज़र्बंदि से पलायन :
1940 जुलाई 2 तारीख को नेताजी गिरफ्तार हुए और अंग्रेज सरकार के द्वारा कोलकाता में नजरबंदी हुए । 1941 भारत के बाहर रहकर भारत की स्वतंत्रता क्वे लिए लड़ने का उद्देश्य लेकर उस साल वोह भेस बदल कर भारत छोड़कर चले गये । ” शत्रु का शत्रु हमारा मित्र है ” इस निति का अनुसरण करते हुए भारत के बाहर से ब्रिटिश आर्मी को अघात करने को सोच लिया था । नेताजी पहले इंग्लैंड के बड़े शत्रु जापान और जर्मान का समर्थन पाने की कोसिस की । 1941 जनवरी 26 में वोह भारत सीमा पार कर के अफगानिस्तान और सोभिएत रूस से होतेहुए मार्च 25 तारीख को मुसलमान के भेष में बर्लिन पोहचे । जर्मान सर्कार के मदत से वोह बाहां एक ” स्वाधीन भारत केंद्र ” और एक ” फ्री इंडिया आर्मी ” का गठन किआ । वाहां के 20000 भारतीय युद्ध बंदी इसमे सामिल हुए । जर्मानी में 1941को सुभास बोस “आजाद हिन्द रेडियो ” की स्थापना की । 1942 फेब्रुअरी 19 को वाहां से उनकी पहली गुप्त सन्देश भारत बासी के लिए भेजा गेया ।
आजाद हिन्द फ़ौज का गठन :
जेर्मानी भारत सीमा से बोहोत दूर होने के कारण वहां स संग्राम छलना बोहोत मुस्किल था एस लिए वोह जापान चले गये । जापान में रह रहे भारतीय क्रन्तिकारी रासबिहारी बोस वहां भारतीय स्वतंत्रता संघ बनाया था । सुभाष कप्तान मोहन सिंग के नेतृत्व में ” आजाद हिन्द फ़ौज ” का गठन किआ । थाईलैंड का राजधानी बंकोक में हो रहे भारत स्वतंत्रता सम्मिलनी के फेसले के अनुशार रासबिहारी ने सुभाष बोस को आजाद हिन्द फ़ौज का नेतृत्वा के लिए जापान आने का निमंत्रण दिया । ये सुभाष के लिए एक सुन्हेरा अबसर था । 1943 फेब्रुअरी 8 तारीख को सुभाष समुद्री जहाज से जापान केलिए रवाना हुए और 1943 जून 13 को तोकिओ सेहर पोहचे । वहां पर वोह जापान के प्रधानमंत्री टोजो स मिले और दो रेडियो स्टेशन बनाया । उसके बाद 1943 जुलाई 2 तारीख को सुभाष जेर्मनी पोहचे और वहां भारत स्वाधीनता संघ तथा आजाद हिंद फ़ौज का नेतृत्वा लिया । आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिक शुबश बोस को ” नेताजी ” कहते थे । सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज का चार ब्रिगेड बनाया था । वोह सब हें गाँधी ब्रिगेड, नेहेरू ब्रिगेड, आजाद ब्रिगेड और झाँसी रानी ब्रिगेड । कप्तान लक्ष्मी सेहेगल ने झाँसी रानी ब्रिगेड का नेतृत्वा लिया था ।

Netaji Subhas Chandra Bose with “Azad Hind Fauj”
सरकार गठन :
नेताजी आयेरल्यांड के अस्थाई सरकार का अनुकरण करते हुए 1943 अक्टूबर 21 को सिंगापूर में आजाद हिन्द सरकार का गठन किआ । जापान, जेर्मानी, इटाली, मिआंमार, थाईलैंड, चीन, फिलिपाईन्स ने इस सरकार को मंजूरी दी । सुभाष बोस इस सरकार के पहले प्रधान मंत्री तथा सेनापति बने । ” आजाद हिंद सरकार ” गठन करके सुभाष भारत के अंग्रेज सरकार के खिलाप युद्ध की घोषणा कर दी । वोह कहते थे ” दिल्ली का पथ ही स्वतंत्रता का पथ है ” वोह अपने आवाहन में ये सन्देश दिया था की ” तुम मुझे खून दो में तुम्हे आज़ादी दूंगा ।”
भारत अभियान :
द्वितीय बिस्वयुध के दोरान आजाद हिन्द फ़ौज ने जापानी सीनाके सहयोग से भारत पर आक्रमण किआ । आपनी फ़ौज को प्रेरित करने केलिए नेताजी ” दिल्ली चलो “,” जयहिंद ” का नारा दिया । दोनों सेनाने 1943 नवम्अंबर 6 अरिख को अंग्रेज सेनसे से अंडामान और निकोबर द्वीप जित ली । उन्होंने उनका नेया नाम ” सहीद द्वीप “,” स्वराज द्वीप ” रखा था । 1944 अप्रैल के महीने में आजाद हिन्द फ़ौज ने मिआंमार पार करके मणिपुर राज्य में प्रबेश किआ था तथा कोहिमा दखल करके वाहां भारत का बिजय झंडा लहरा कर मणिपुर राजधानी इंफाल के लिए निकल गए । अब बोहोत बारिस होने के कारण जापान और आजाद हिन्द फ़ौज के बिच संचार ब्याबस्ता बंद पड़ छुका था । उसकेसाथ ” द्वितीय बिस्वयुध ” में जापान की पराजय भी आजाद हिन्द फ़ौज का इस आपदा का कारण था । जापान आजाद सेनाको सहायता करने का सभी संभाबना बंद होछुके थे । ब्रिटिश सेना भारत के उत्तरी-पूर्ब सीमा तक आ कर असाम के साथ कई इलाके आपने नियंत्रण में लेगेये । बाकि बचे सैनिको के पास पीछे हटने के अलाबा कोई रास्ता नेहीं था ।
मृत्यु :
द्वितीय बिस्वयुध में जापान की हार के बाद नया रास्ता ढूँढना बोहोत जरुरी था । 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे । इस सफर के दोरान वे लापता हो गये । इस दिन के बाद वे कभी किसीको दिखाई नेही दिये ।कुछ दिनों बाद समाचार में आया की 18 अगस्त को बिमान दुर्घटना में नेताजी की मोत हो गयी । हालाकि इस खबरको कई लोग सच नेही मानते । नेताजी की मोत के कारण पर आज भी बिबाद बना हुआ हें ।